फतेहपुर सिकरी का इतिहास,जानकारी,मुख्य इमारते तथ्य मुग़ल बादशाह अकबर के खवाबों की नगरी
History, information, main building facts of Fatehpur Sikri, city of Mughal Emperor Akbar.( Agra U.P)
फतेहपुर सिकरी का इतिहास(History of Fatehpur Sikri)फतेहपुर सिकरी किला मुग़ल काल की याद दिलाता है! की किस प्रकार मुगलों ने अपने लिए भव्य किलों नगरों इमारतों का निर्माण करवाया!जिसमे से एक है ,फतेहपुर सिकरी ये नगर आगरा से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है इस जगह को बादशाह अकबर ने अपने सपनो का शहर बनाया था परन्तु यह शहर अधिक समय तक मुग़ल सल्तनत में शामिल न रह सका यहाँ की बेहद खूबसूरत इमारतें,किले तालाब,आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेते हैं यहाँ की इमारतें लाल बलुआ पत्थर से बानी हुई हैं जो अपनी वस्तुकलां,भव्यता,और सटीकता को बयां कर रही है!
जब बादशाह अकबर की जोधा बाई से शादी हो गई तो कई वर्षों तक उनके औलाद नहीं हुई तो उन्होंने मन्नत मांगने के लिए अजमेर स्तिथ ख्वाजा मुइनोद्दीन औलिया की दरगाह में जाना सोचा१ जब वह दरगाह पर जा रहे थे तभी उन्हें राह में उनकी मुलाकात सूफी संत शेख सलीम चिस्ती से हुई!बाबा शेख सलीम चिश्ती ने अकबर से अपने रुकने के लिए व्यवस्था करने के लिए कहा,और अकबर की मनोकामना पूरी करने की दुआ की,तो अकबर ने उनके रुकने के लिए स्थान बनवा दिया!कुछ समय पाश्चात अकबर के घर में इक पुत्र ने जनम लिया!अकबर ने उसका नाम सलीम रख दिया!अकबर ने यह नाम संत सलीम चिश्ती के नाम पर रख दिया,क्योंकि ये पुत्र उन्ही के आशीर्वाद से हुआ था!
अकबर को सिकरी में पुत्र प्राप्ति हुई,जिसके चलते बादशाह अकबर ने सिकरी को अपनी राजधानी बनाने का निश्च्य कर लिया! इस नगर की योजना बनाने में अकबर को 15 वर्ष का समय लगा, और 1559 ई में बादशाह अकबर ने एक नई मुग़ल नगरी की स्थापना कर दी! इस प्रकार राजधानी आगरा से बदलकर सिकरी को बनाया गया! यह नगर 1571 से 1585 ई तक मुगलों ने 14 वर्षो तक इस पर राज किया! इसके बीच अकबर ने गुजरात पर हमला कर विजय प्राप्त की थी! इस कारण बादशाह ने सिकरी का नाम फतेहपुर सिकरी रख दिया था! परन्तु राज्य में पानी की कमी हो जाने के कारण मुगल बादशाह को अपनी राजधानी दोबारा बदल कर आगरा बनानी पड़ी फतेहपुर सिकरी में कई मंदिर,महल तथा इमारतों को निर्माण कराया गया!जिनके अवशेष आज भी सिकरी में मौजूद है!
फतेहपुर सिकरी की मुख्य इमारतें(Main buildings of Fatehpur Sikri)
- बुलंद दरवाजा
- दीवान ए खास
- दीवान ए आम
- ख्वाब महल
- पंचमहल
- जोधाबाई का महल
- हिरन मीनार ईमारत
- शेख सलीम चिश्ती की दरगह
बुलंद दरवाजा(Elevated door)
फतेहपुर सिकरी में अकबर ने एक विशाल प्रवेश द्वार का निर्माण करवाया था !यह निर्माण अकबर ने गुजरात की विजय की याद में बनवाया जिसे बुलंद दरवाजा कहा जाता है !यह दरवाजा मुगल सम्राट द्वारा 1601 में बनवाया गया था !इसकी ऊंचाई 53.60 मीटर 35 मी चौड़ाई !यह विशव का सबसे ऊंचा प्रवेश द्वार है ! इसमें लाल बलुआ पत्थर तथा सफेद और काले संगमरमर की नकाशी और फ़ारसी वास्तुकला द्वारा सजाया गया है!बुलंद दरवाजे के केंद्रीय मुख पर एक शिलालेख अकबर की धार्मिक सहिष्ण्ता तथा व्यापक मानसिकता पर प्रभाव डालती है ! इसकी दीवारों पर अक्सरो में कुरान की आयतो को उकेरा गया है!छत पर तेरह छोटे गुम्बदद शैलीगत लड़ाई और छोटे बुर्ज और सफ़ेद और काले संगमरमर से जड़ित है!बुलंद दरवाजे की सीढ़ीओं बाहर क़दमों के साथ एक लम्बीं उड़ान नीचें उतरती है!जिससे इसकी अतिरिक्त ऊंचाई मिलती हैं!
दीवान ए खास(Diwan e khas)
दीवान ए आम(Diwan e aam)
पंचमहल(panchmahal)
यह महल 176 खम्बों पर बना है१िस्का उपयोग बादशाह अपना मनोरंजन करने के लिए किया करते थे यह पांच मंजिला तथा हवादार है!इसका प्रतेक कमरा अपने निचली मंजिल के कमरों से छोटा है!यहाँ पर शाही हरम में रहने वाली महिलाएं को मनोरंजन को प्राप्त होता था वही अकबर ने हिन्दू महिलाओं को कमरों को श्री कृष्ण की कालकृतिओं तथा मंदिर के घंटों की नक्काशी चित्रों को उकेरा गया है!पंचमहल के पार में ही अकबर का महल स्तिथ है!इसे 1580 में बनवाया गया था!इसके पीछे की तरफ अकबर के अपने निजी घोड़ों तथा ऊँटों को रखने के लिए अस्तबल भी बनवाया था!
जोधाबाई महल(Jodha Bai Mahal)
शेख सलीम चिश्ती की दरगाह(Sheikh Salim Chishti's Dargah)
शेख सलीम चिश्ती की दरगाह को 1581 ईo में इस दरगाह का निर्माण अकबर द्वारा करवाया गया था!यहा पर्यटक आकर दर्शन करते हैं!और मनोकामना मांगते हैं,खासतौर पर यहाँ संतान प्राप्ति की कामना की जाती है!लोग यहाँ दरगाह की नक्काशीदार खिड़कियों में धागा बांधते हैं और मन्नत मांगते हैं दरगाह के अग्रिम भाग में लगे खम्बों को गुजराती संस्कृतिओं द्वारा सुसज्जित किया गया है!
हिरन मीनार ईमारत(Deer tower)
यहाँ हिरन के सींगो की तरह उभरे हुए पत्थर पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र हैं!यहाँ पर हनन नमक को दफ़न किया गया था!यह हठी के पैरों के निचे मृत्यु दण्ड पाए हुए अप्राधिओं को कुचल कर दण्डित किया जाता था!
इसलिए इसका नाम हिरन मीनार रख दिया गया!
इसलिए इसका नाम हिरन मीनार रख दिया गया!
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